ये बे-ख़ुलूस है दुनिया न दर-ब-दर जाओ अब अपना कासा-ए-दिल ले के अपने घर जाओ चढ़ाव पर है ये दरिया अभी ठहर जाओ अगर है ख़ुद पे भरोसा तो पार उतर जाओ फ़क़त मिरे ही लहू की है प्यास ख़ंजर को तुम अपनी राहों पे बे-ख़ौफ़-ओ-बे-ख़तर जाओ हर एक चेहरे पे सूरज तलाशने वालो कहीं न दिन के उजाले में ही बिखर जाओ तमाम जिस्म मुझे बर्फ़ बर्फ़ लगते हैं नज़र की धूप समेटे हुए गुज़र जाओ अँधेरी रातों की पलकें बहुत घनेरी हैं हमारी आँखों की पुतली में ही ठहर जाओ मैं काट लूँगा किसी तरह अपनी तीरा-शबी तुम अपने वास्ते ले कर मिरी सहर जाओ अब इस के बा'द मुझे कूफ़ियों में घिरना है यहीं से लौट के वापस ऐ हम-सफ़र जाओ ये बे-सरों का नगर है तो ये करो 'अनवर' सर-ए-ख़ुदी को तुम अपने सँभाल कर जाओ