ये भी नहीं कि बाला-ओ-बरतर नहीं हूँ मैं माना कि मुश्त-ए-ख़ाक से बढ़ कर नहीं हूँ मैं काफ़ी है इक किरन भी मिटाने के वास्ते शबनम हूँ बर्ग-ए-गुल पे समुंदर नहीं हूँ मैं क्यों कर क़फ़स में मुझ को न आए चमन की याद बे-बाल-ओ-पर ज़रूर हूँ बे-घर नहीं हूँ मैं ज़ुल्म-ओ-सितम की सारी हदें पार कर गया फिर भी वो कह रहा है सितमगर नहीं हूँ मैं कोह-ए-ग़म-ओ-अलम को किया मैं ने पाश पाश यूँ देखिए तो आहन-ओ-पत्थर नहीं हूँ मैं मैं तेरा एक परतव-ए-फ़ानी जहाँ में हूँ गोया ये तय है उतना भी कमतर नहीं हूँ मैं तारीक रास्तों में कहा राहबर ने 'नाज़' अज़्म-ए-सफ़र के नूर से बढ़ कर नहीं हूँ मैं