ये ज़ुल्म है ख़याल से ओझल न कर उसे जो हासिल-ए-सफ़र है मोअ'त्तल न कर उसे वो शो'ला-ए-सवाल कि दुनिया उजाल दे दिल के चराग़ में तो मुक़फ़्फ़ल न कर उसे हर शेल्फ़ पर सजे हैं मगर दुश्मनों के सर नादाँ तेरा दिमाग़ है मक़्तल न कर उसे हैरत तिरी सरिश्त है ना-रस तिरी निगाह वो उक़्दा-ए-जमाल अभी हल न कर उसे ये और बात एक सितारे से जंग है बस जंग है जिहाद-ए-मुसलसल न कर उसे