ये कैसे ज़ुल्म-ओ-सितम और अज़िय्यतें कैसी पड़ी हैं मेरे ही पीछे मुसीबतें कैसी हूँ घर में चैन से भूके हैं मेरे हमसाए किसी के काम न आए तो दौलतें कैसी हमारी सड़कों पे बहती हैं दूध की नहरें हमें पता है कि होती हैं जन्नतें कैसी जो भूक से हैं परेशाँ वो कब समझते हैं कि क्या है ज़ाइक़ा होती हैं लज़्ज़तें कैसी भरा हो पेट तो आता है लुत्फ़ सज्दों में वगर्ना कैसी नमाज़ें इबादतें कैसी न कोई फ़ातिहा-ख़्वाँ है न कोई दस्त-ए-दुआ' ये चार सू नज़र आती हैं तुर्बतें कैसी न जाने कौन सा छिड़का है आब गुलचीं ने गुलों पे छाई हैं 'अंजुम' ये दहशतें कैसी