ये मैं ने माना कुछ उस ने कहा है लेकिन क्या हमारा हाल सब उस को पता है लेकिन क्या मिरी सलीब तो रखवा दो मेरे कंधों पर क़तार लम्बी है वक़्फ़ा बड़ा है लेकिन क्या रही न पाँव में जुम्बिश न आँख में उम्मीद हमारे सामने रस्ता पड़ा है लेकिन क्या हर एक शख़्स मुक़फ़्फ़ल मकान के मानिंद नगर में कुछ तो यक़ीनन हुआ है लेकिन क्या कोई बताओ कहाँ दूसरा क़दम रखूँ दयार-ए-ज़ीस्त बहुत ही बड़ा है लेकिन क्या उठा के ले गईं 'आबिद' को मौजें साहिल से कोई सफ़ीना उसे ढूँढता है लेकिन क्या