ये मेरी आँखों की सोज़िश को देख दर्द समझ सफ़ेद बालों को मेरे सफ़र की गर्द समझ कुछ ऐसे क़ाएदे हैं कि बदल नहीं जिन का तू नीले आसमाँ को एक लम्हा ज़र्द समझ न पूछ हम पे गुज़रती है हिज्र में क्या दोस्त कलेजा आवे है मुँह को बदन को सर्द समझ जिसे बुलाते हैं कम-कम ही सारे घर वाले मुझे तू मेरे घराने का वो ही फ़र्द समझ अब ऐसा मसअला है तेरा होना मेरे लिए कि जैसे बे-वज्ह होता है सर में दर्द समझ