ये नुमाइश ये तमाशे नहीं अच्छे लगते हों मसाइल तो नज़ारे नहीं अच्छे लगते सुर्ख़ लब सुरमई आँखें ये सँवरना सजना मुफ़्लिसी में ये दिखावे नहीं अच्छे लगते तू मुझे भूक भी सह लेने का आदी कर दे अब महाजन के तक़ाज़े नहीं अच्छे लगते मेरी ग़ुर्बत ने मुझे बख़्शा अँधेरों का मिज़ाज वर्ना किस को ये उजाले नहीं अच्छे लगते ये तो सच है कि वो इख़्लास से मिलता है बहुत फिर भी कुछ उस के इरादे नहीं अच्छे लगते रुत बदलते ही हर इक ज़ेहन बदल जाता है धूप को रोकते साए नहीं अच्छे लगते यही बेहतर है कमाँ नस्ल-ए-जवाँ को दे दो बूढ़े हाथों से निशाने नहीं अच्छे लगते मेरी सदियों का भरम टूट चुका है 'शहज़र' अब ये हँसते हुए लम्हे नहीं अच्छे लगते