ये फूल हैं ये बहारें हैं ये गुलिस्ताँ है जिसे भी देखिए अपनी जगह परेशाँ है जो अश्क आँख से टपके वो हश्र-सामाँ है जो मौज दिल से तड़प कर उठे वो तूफ़ाँ है दिल-ए-तबाह ख़बर भी है तेरे मिटने पर सुना है मैं ने कि अब वो भी कुछ परेशाँ है यही उठाता है तूफ़ान दिल की दुनिया में तिरा ख़याल भी किस दर्जा हश्र-सामाँ है उसे फ़ज़ा-ए-दो-आलम से वास्ता ही नहीं जिसे तुम्हारी तमन्ना तुम्हारा अरमाँ है हज़ार तरह की रंगीनियाँ हैं ग़ुंचों में मगर नज़र तो तुम्हारे लिए परेशाँ है 'वकील' ढूँढता है दिल उसी के जल्वों को ख़याल-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत से जो गुरेज़ाँ है