यूँही काटी है ज़िंदगी तन्हा ग़म हो चाहे कि हो ख़ुशी तन्हा हक़ कहेगी ज़बान ये मेरी चाहे कर दे ये गाम ही तन्हा इक दिया ही बहुत है जो कर दे घुप अंधेरे में रौशनी तन्हा उस का लहजा मुझे डराता है उस को कर दे न बे-हिसी तन्हा राज़ दिल के दबे ही रहने दो कर न दे तुम को आगही तन्हा महफ़िलें रोज़ ही हैं सजती मगर फिर भी लगता है हर कोई तन्हा साथ था यूँ तो उम्र भर कोई 'रूबी' फिर भी मगर रही तन्हा