यूँही से चंद वाहिमे कुछ बद-गुमानियाँ तख़्लीक़ इन ही से हुईं कितनी कहानियाँ कुछ कम नहीं है शोख़ मिरे दर्द का भी रंग उस की हिकायतों में गो राजे न रानियाँ थोड़ा जुनून इक ज़रा वहशत और इंहिराफ़ इन के बग़ैर चीज़ क्या होतीं जवानियाँ यूँही कभी-कभार तो परियों की बात हो जादूगरी नहीं सही जादू-बयानियाँ कुम्बा भरा भरा था कोई कल उसी जगह मिलती हैं ज़ेर-ए-ख़ाक अब उस की निशानियाँ 'सोनू' उन्हें मना कि मोअ'त्तर हो फिर से रात रूठी पड़ी हैं मुद्दतों से रात-रानियाँ