यूँ भी हम मा'रका-ए-उम्र-ए-रवाँ से गुज़रे इक जहाँ ज़ेर किया एक जहाँ से गुज़रे अब तिरे दर्द को हर तरह की आज़ादी है या मिरे दिल में रहे या रग-ए-जाँ से गुज़रे हैफ़-सद-हैफ़ कि इक दिल में जगह को तरसे वो नज़र अंजुमन-ए-कौन-ओ-मकाँ से गुज़रे हम से बढ़ कर कोई शायान-ए-चमन क्या होगा हम बहारों में रहे दौर-ए-ख़िज़ाँ से गुज़रे ग़म के तूफ़ाँ से गुज़रना भी है आसाँ 'अफ़्सूँ' दिल अगर कश्मकश-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ से गुज़रे