ज़िंदगी-ए-बे-मज़ा के नाज़ उठा सकता है कौन भूलने वाले भला तुझ को भुला सकता है कौन बरमला रूदाद-ए-ग़म उन को सुना सकता है कौन अपनी राह-ए-शौक़ में काँटे बिछा सकता है कौन उस नज़र के सामने नज़रें उठा सकता है कौन आसमाँ से इन ज़मीनों को मिला सकता है कौन ज़ाहिरी तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ पर है दुनिया ख़ुश तो हो उन से जो कुछ रब्त-ए-बातिन है मिटा सकता है कौन क़ल्ब रौशन हौसले मोहकम इरादे पाएदार रहरवान-ए-इश्क़ को मशअ'ल दिखा सकता है कौन ज़र्रा ज़र्रा से नुमायाँ जल्वा-हा-ए-हुस्न-ए-दोस्त जब ये आलम हो तो फिर दामन बचा सकता है कौन राह की दुश्वारियाँ अब उन को समझाना फ़ुज़ूल डूबने वाले को ऐ 'अफ़्सूँ' बचा सकता है कौन