ज़मीन टूट गई आसमान टूट गया लगा जो संग-ए-हक़ीक़त गुमान टूट गया अभी हयात का इरफ़ान होने वाला था किसी के पावँ की आहट से ध्यान टूट गया नहीं सँभाल सकी हम से निशानी-ए-तहज़ीब चिलमची टूट गई पानदान टूट गया मैं जब था आइना महफ़ूज़ था ज़माने में अजीब बात है बन कर चटान टूट गया ख़ुशी की बात कि ख़ुशबू बिखर गई हर-सू अलम की बात नया इत्र-दान टूट गया रवाँ थी नाव मिरी जिस के दम से ऐ 'मेराज' उसी हवा से मिरा बादबान टूट गया