ज़ब्त का जितना असासा है उठाए जाएँगे अब महाजन कर्ब के मुझ से न टाले जाएँगे हक़-परस्तों से सलीबों को सजाया जाएगा और कभी सर उन के नेज़ों पर उछाले जाएँगे रेज़ा-रेज़ा ख़्वाहिशें और आरज़ूएँ ज़ख़्म-ज़ख़्म मेरे घर से जाने वाले और क्या ले जाएँगे है वहाँ तो सिर्फ़ सिक्कों की नुमाइश का चलन आप उस बाज़ार में नक़्द-ए-वफ़ा ले जाएँगे दिल का सोना रूप की चाँदी जवानी का निखार वक़्त के क़ज़्ज़ाक़ आ कर सब उठा ले जाएँगे फूल चाहत के बिछाते जाएँगे हर राह में नफ़रतों के ख़ार ऐ 'राही' उठा ले जाएँगे