ज़ाहिद भी मेरी तरह उसी पर फ़िदा न हो का'बे के पर्दे में बुत-ए-काफ़िर छुपा न हो तक़दीर है ख़िलाफ़ तुम्हारी ख़ता नहीं बिगड़ो हमीं से और किसी से ख़फ़ा न हो आमीन कह रहे हैं बुतान-ए-सनम-कदा मक़्बूल बारगाह-ए-ख़ुदा क्यों दुआ न हो बदला अगर वफ़ा का जफ़ा हो जहान में ओ ना-शनास क़द्र-ए-वफ़ा फिर वफ़ा न हो पा-ए-सनम पे सर है तमन्ना ये दिल में है मेरे सिवा क़ुबूल किसी की दुआ न हो उलटें तो किस के सामने उलटें नक़ाब-ए-रुख़ जब कोई उन का देखने वाला रहा न हो क़ातिल ये आरज़ू तिरे बिस्मिल के दिल में है ख़ंजर हिलाल बन के गले से जुदा न हो बाक़ी रहे न हद कोई तेरे ग़ुरूर की ओ बेवफ़ा जो हुस्न तिरा बेवफ़ा न हो सज्दा करें हम उस बुत-ए-काफ़िर को दैर में कुछ बे-ख़ुदी-ए-इश्क़ में ख़ौफ़-ए-ख़ुदा न हो अपना ख़िराम-ए-नाज़ अबस देखते हो तुम देखो मिरा निशान-ए-लहद मिट गया न हो ज़ाहिद हरम से लाए तुझे कौन खींच कर गर बुत-कदे में जल्वा-ए-शान-ए-ख़ुदा न हो मरने के बाद उन की हया हम से कम हुई वो कह रहे हैं रूठने वाले ख़फ़ा न हो रंजीदा हो के दर से जो उठता हूँ कहते हैं दुनिया में ज़िंदगी से कोई यूँ ख़फ़ा न हो आते हो तुम जो रोज़ अयादत के वास्ते मक़्सूद इस से ये है कि मुझ को शिफ़ा न हो साक़ी-ए-पाक-दिल हमें आता नहीं मज़ा जब तक शरीक-ए-दौर कोई पारसा न हो वो हुक्म दे चुके हैं कि अब उन की बज़्म में दुनिया की गुफ़्तुगू हो मिरा तज़्किरा न हो क़दमों पे सर झुकाए बड़ी देर हो गई बाहें गले में डाल भी दो अब ख़फ़ा न हो साक़ी पिला ख़ुदा के लिए आज रात भर इस की तो कुछ ख़बर नहीं कल क्या हो क्या न हो 'नौशाद' वो जो नाज़ से आएँ तो देखना जिस का क़ज़ा है नाम वो उन की अदा न हो