ज़िंदगी हो गई किस तरह बसर याद नहीं रोज़-ओ-शब याद नहीं शाम-ओ-सहर याद नहीं लुट गया कैसे मोहब्बत में ये घर याद नहीं कैसे बर्बाद हुए क़ल्ब-ओ-जिगर याद नहीं हाल-ए-ज़ार अपने दिल-अफ़गार का क्यों भूल गए ख़ुश्क लब याद नहीं दीदा-ए-तर याद नहीं ज़ाहिद-ए-ख़ुश्क हुए देते हैं सब को ता'लीम शैख़ को अपना कभी दामन-ए-तर याद नहीं उन की तन्क़ीद-निगाही पे है दिल को हैरत ऐब सब गिनते हैं और एक हुनर याद नहीं आज पहलू में पता दिल का नहीं मिलता है काम कब कर गई दुज़्दीदा नज़र याद नहीं टिकटिकी चश्म-ए-तमन्ना को दम-ए-जल्वा रही किस घड़ी टूट गया तार-ए-नज़र याद नहीं मुझ से वा'दा जो लिया तुम ने जो इक़रार किया मुझ को तो याद है सब तुम को मगर याद नहीं मिल के 'साक़िब' मुझे आरा के सुख़न-संजों से हुई हासिल वो ख़ुशी रंज-ए-सफ़र याद नहीं