ज़िंदगी का लुत्फ़ अब हासिल नहीं हाए वो साक़ी नहीं महफ़िल नहीं अब वो लुत्फ़-ओ-सरख़ुशी हासिल नहीं क्या करूँ मजबूर हूँ वो दिल नहीं कोई पहलू भी क़रार-ए-दिल नहीं ज़िंदगी को कुछ सुकूँ हासिल नहीं ज़िंदगी वो ज़िंदगी किस काम की जब रज़ा-ए-दोस्त ही हासिल नहीं इस चमन में इंक़लाब आया तो क्या फ़स्ल-ए-गुल भी साज़गार-ए-दिल नहीं अल्लह अल्लह ये हुजूम-ए-आरज़ू ख़ाना-हा-ए-दिल में जा-ए-तिल नहीं इब्तिदा-ए-इश्क़ की मंज़िल तो है इंतिहा-ए-इश्क़ की मंज़िल नहीं है मिरे पेश-ए-नज़र उस का मआल कारवाँ अब जानिब-ए-मंज़िल नहीं दिल वही दिल है कि जिस में दर्द हो दर्द जिस दिल में नहीं वो दिल नहीं तू ही क्या है मेरे दिल से बद-गुमाँ मुझ को ख़ुद भी ए'तिबार-ए-दिल नहीं दाग़-ए-दिल से कौन ख़ाली है यहाँ माह-ए-कामिल भी 'ज़की' कामिल नहीं