ज़िंदगी के माथे पर आई जब शिकन यारो सरफ़रोश उठते हैं बाँध कर कफ़न यारो शाख़ सा बदन यारो फूल सा दहन यारो कोई मुझ से पूछे तो उस का बाँकपन यारो साज़-ए-अस्र-ए-हाज़िर पर नग़्मा-ए-कुहन यारो होश में अब आ जाओ मेरे हम-वतन यारो गर्दिश-ए-ज़माना भी राहत-ए-ज़माना भी रब्त-ए-शो'ला-ओ-शबनम दिल की अंजुमन यारो क़तरा-क़तरा ख़ून-ए-दिल आँख से टपकता है आज नश्तर-ए-ग़म की बढ़ गई चुभन यारो ये जो 'दर्द' है रुख़ पर अश्क-ए-ख़ूँ की लाली है बस गया है आँखों में एक गुल-बदन यारो