ज़िंदगी मौत की रहीन लगे फिर भी दुनिया बड़ी हसीन लगे ख़्वाहिशों के लिबास में रह कर जिस्म मेरा मुझे कमीन लगे आ कि उस मोड़ पर चलें दोनों तुझ को मज़हब न मुझ को दीन लगे रोज़-ओ-शब की थकावटों का लाल पीठ से कब मिरी ज़मीन लगे हम ही ख़ुद होश में नहीं हैं 'ख़लिश' ये सदी तो बड़ी ज़हीन लगे