ज़िंदगी में कमी न हो जाए तुम मिलोगे यक़ीं न खो जाए भूल जाऊँ तुझे दुआ है और इल्तिजा है वही न हो जाए तुम मिलो पर अज़ीज़ है ग़म भी डर है मुझ को ख़ुशी न हो जाए आशिक़ी बंदगी हुई है यूँ तू ख़ुदा मैं वली न हो जाए रात भर तो दिया रहा रौशन सुब्ह जब हो तभी न सो जाए ज़ब्त-ए-ग़म से मिरे ही डरता हूँ देख कर वो कहीं न रो जाए एक हो जाएँ इस क़दर 'बेताब' मैं न होऊँ कहीं न वो जाए