मुसाहिबीन-ए-शाह मुतमइन हुए कि सरफ़राज़ सर-बुरीदा बाज़ुओं समेत शहर की फ़सील पर लटक रहे हैं और हर तरफ़ सुकून है सुकून ही सुकून है फ़ुग़ान-ए-ख़ल्क़ अहल-ए-ताइफ़ा की नज़्र हो गई मता-ए-सब्र वहशत-ए-दुआ की नज़्र हो गई उमीद-ए-अज्र बे-यक़ीनी-ए-जज़ा की नज़्र हो गई न ए'तिबार-ए-हर्फ़ है न आबरू-ए-ख़ून है सुकून ही सुकून है मुसाहिबीन-ए-शाह मुतमइन हुए कि सरफ़राज़ सर-बुरीदा बाज़ुओं समेत शहर की फ़सील पर लटक रहे हैं और हर तरफ़ सुकून है सुकून ही सुकून है ख़लीज-ए-इक़्तिदार सरकशों से पाट दी गई जो हाथ आई दौलत-ए-ग़नीम बाँट दी गई तनाब-ए-ख़ेमा-ए-लिसान-ओ-लफ्ज़ काट दी गई फ़ज़ा वो है कि आरज़ू-ए-ख़ैर तक जुनून है सुकून ही सुकून है मुसाहिबीन-ए-शाह मुतमइन हुए कि सरफ़राज़ सर-बुरीदा बाज़ुओं समेत शहर की फ़सील पर लटक रहे हैं और हर तरफ़ सुकून है सुकून ही सुकून है