हम हाथ नहीं मिलाएँगे ये वक़्त दिलों को मिलाने का है हम ने तन्हाई ओढ़ ली और इंसानियत की इकाई को सिरहाना बना लिया हम सफ़र नहीं करेंगे जब तक हमारे संदूक़ ख़ूबसूरत तहाइफ़ से तही हैं हाजत से ज़ियादा ख़रीदेंगे न बेचेंगे कि दुकानें और बाज़ार फ़रावानी से भरे रहें बग़ैर ज़रूरत घरों से नहीं निकलेंगे कि शाहराहें मैदान और बाग़ जल्द आबाद हूँ अगर ज़रूरी हुआ तो किसी ख़ामोश कोने में मरेंगे कि ज़मीन हमारे बाद भी गीतों से गूँजती रहे