पतंगों की न शम-ए-अंजुमन की आज़माइश है दिलों का इम्तिहाँ है जान-ओ-तन की आज़माइश है मुसीबत आ चुकी है आ रही है आने वाली है शकेब-ए-रूह की ताब-ए-बदन की आज़माइश है अजल क्या जाने फ़र्क़ अहल-ए-हरम और दैर वालों का बिला तफ़रीक़ शैख़-ओ-बरहमन की आज़माइश है छलकते हैं जिगर के ख़ून से आँखों के पैमाने सुकून-ओ-सब्र के जाम-ए-कुहन की आज़माइश है सवाल अब ख़ार-ओ-ख़स या ग़ुंचा-ओ-गुल का नहीं हमदम चली तेग़-ए-ख़िज़ाँ सारे चमन की आज़माइश है गले घुटते हैं या फिर टूटती हैं फाँसियाँ देखें सर-ओ-दोश इक तरफ़ दार-ओ-रसन की आज़माइश है अभी कुछ रह गए हैं तार दामान-ए-मोहब्बत में फ़िगार इंसानियत के पैरहन की आज़माइश है तमाम अहल-ए-ज़मीं की हमदमी का ज़िक्र अभी से क्यों अभी तो जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन की आज़माइश है