ये एक अहद-ए-सज़ा है जज़ा की बात न कर दुआ से हाथ उठा रख दवा की बात न कर ख़ुदा के नाम पे ज़ालिम नहीं ये ज़ुल्म रवा मुझे जो चाहे सज़ा दे ख़ुदा की बात न कर हयात अब तो इन्हीं महबसों में गुज़रेगी सितमगरों से कोई इल्तिजा की बात न कर उन्ही के हाथ में पत्थर हैं जिन को प्यार किया ये देख हश्र हमारा वफ़ा की बात न कर अभी तो पाई है मैं ने रिहाई रहज़न से भटक न जाऊँ मैं फिर रहनुमा की बात न कर बुझा दिया है हवा ने हर एक दया का दिया न ढूँड अहल-ए-करम को दया की बात न कर नुज़ूल-ए-हब्स हुआ है फ़लक से ऐ 'जालिब' घुटा घुटा ही सही दम घटा की बात न कर