मिरे ख़ुदाया बिछड़ न जाए जो मुझ से अब तक मिला नहीं है वो मेरी रातों का रत-जगा भी है मेरे ख़्वाबों की चाँदनी भी मैं उस को देखूँ तो सुब्ह निखरे मैं उस को सोचूँ तो शाम महके वो मेरे आँगन में पाँव रक्खे तो कहकशाँ आसमाँ से उतरे मिरे ख़यालों से उस का रिश्ता तमाम रिश्तों की सारी सच्चाइयों से बरतर अटूट अन-मिट अज़ीम रिश्ता मिरी दुआ है वो शख़्स इस शहर-ए-आरज़ू से जो अब के जाए अज़ीम सच उस के साथ जाए