वो अजनबी था मिरे नगर में एक ऐसी मंज़िल का राह-रौ जो फ़क़त तमन्ना थी रौशनी थी मैं किस से पूछूँ कहाँ है वो अजनबी मुसाफ़िर जो प्यार की धूप ले के आया और अब गया है तू हँसता हँसता ये शहर सुनसान कर गया है मैं कैसे मानूँ कि जाने वाले को हादसे की ख़बर नहीं है जो शहर-ए-दिल पर गुज़र गया है मैं कैसे जानूँ कि दूर जा कर उदास है ख़ुश है जागता है कि सो रहा है कभी मुझे भी वो सोचता है मैं किस से पूछूँ कि मैं यहाँ ख़ुद भी अजनबी हूँ