किया काम जो भी तो खाई शिकस्त बिल-आख़िर हुई उस की हिम्मत ही पस्त अकड़ शाह बनता गया पोस्ती मोहल्ले के सुस्तों से की दोस्ती सभी सुस्त मिल-जुल के रहने लगे मशक़्क़त वो आपस में सहने लगे उन्ही काहिलों में था इक माल-दार जो सुस्ती का था निस्बतन कम शिकार कहा उस ने सब काहिलों से सुनो तुम अपने लिए एक अफ़सर चुनो है उस के लिए कौन तय्यार अब जिसे हम कहें अपना सरदार अब उठाया हर इक सुस्त ने सुन के हाथ अकड़ शाह शामिल था उन सब के साथ मगर हाथ उस ने उठाया नहीं ज़बाँ से भी उस ने बताया नहीं अकड़ शाह से पूछा फिर एक ने कि हाथ आप के क्यों नहीं हैं उठे अकड़ शाह बोला ऐ मेरे अज़ीज़ इमारत नहीं छोड़ देने की चीज़ मगर मेरा सुस्ती ने छोड़ा न साथ फ़क़त काहिली से उठाया न हाथ सभी उस की सुस्ती के क़ाइल हुए उसी की इमारत पे माइल हुए अकड़ शाह को दी गई एक कार अकड़ कर हुआ उस में इक दिन सवार रखी उस ने पहले तो रफ़्तार कम मगर तेज़ की उस ने फिर एक दम जो बैठे थे साथी वो हैराँ हुए कि तेज़ी से उस की परेशाँ हुए फिर इक सुस्त ने कर के हिम्मत कहा अचानक ये तेज़ी है क्या माजरा अकड़ शाह ने रह के चुप थोड़ी देर कहा एक्सिलेटर पे रखा था पैर मगर फिर जो सुस्ती रुकावट बनी तो रफ़्तार गाड़ी की बढ़ती रही 'उसामा' से क़िस्से अकड़ शाह के न जाओगे सुन कर बिना वाह के