अंदेशा By Nazm << शाम-ए-हिलाल-ए-ईद नया खिलौना >> बे-कराँ रात का है सन्नाटा सड़कें वीरान बाम-ओ-दर ख़ामोश आसमाँ पर नहीं कोई तारा हर तरफ़ फैला हू का आलम है आबले पड़ गए हैं तलवों में सामने रेत का समुंदर है किस तरह तय करूँ मैं ये दूरी राह तक तक के इक हसीन गुलाब रंग-ओ-बू ही कहीं न खो बैठे Share on: