इक परिंदे की सूरत मैं अपनी ही आज़ाद छोटी सी दुनिया में थी ख़ुश-ओ-ख़ुर्रम तो फिर क्या हुआ मुझे याद है ख़ूब अच्छी तरह तुम आए मेरी ज़िंदगी में परिज़्म एक लाए मुझे पेश कर दी नए इस खिलौने के साथ मैं बच्चे की मानिंद ख़ुश थी खिलौने से जब झाँकती थी तो दुनिया थी लगती बड़ी ख़ूबसूरत रंग ही रंग था हर तरफ़ कभी तो वो क़ौस-ए-क़ुज़ह को पकड़ने की ख़्वाहिश मचलती थी मुझ में अचानक ही वो प्यारा प्यारा खिलौना किसी और को सौंप देने की ख़ातिर मअ'न छीन कर तुम ने मुझ से मुझे छोड़ डाला अलग इक परिंदे की मानिंद यादों के पिंजरे में जकड़ा हुआ