मैं एक गोश्त का लोथड़ा थी जिसे कुछ ख़बर न थी वो गोश्त का नर्म-ओ-नाज़ुक टुकड़ा मुहताज था किसी की आग़ोश का किसी के प्यार का किसी के हस्सास जज़्बों का वो साया था मेरे लिए मेरे हर जज़्बे पर हावी था आज मैं कली से फूल बनी मगर वो साया न जाने कहाँ है एक हूक है एक हसरत है एक ख़लिश है मेरी माँ कहाँ है