मग़्लूब ए'तिमाद By Nazm << नज़्म ताज गीत >> और हवाएँ सकते के आलम में खड़ी हैं सम्तें बे-ज़बान सी इक एक को देख रही हैं बुलंदी पर उड़ता ए'तिमाद का तय्यारा ज़रूरतों के पहाड़ से टकराता तवाज़ुन खो बैठा और बिखर गया फिर Share on: