चमकते अधूरे आईने से जो मेरे जिस्म के सब लहजों से वाक़िफ़ है मेरा चेहरा अब उस से बहुत झूट कहने लगा है जिस अक्स को मेरा वजूद छू सकता है ऐसा पूरा आईना मैं ने मिट्टी के समुंदर में देख रखा है जिस मिट्टी से मुसव्विर ने मुझे झिंझोड़ा था उसी मिट्टी में इक रोज़ उभरने के लिए फिर बिखरना है