हाए वो बचपन के दिन साफ़ और सुथरे सच्चे दिन याद बहुत आते हैं अब अपने थे जब अपने दिन फ़िक्र-ओ-तरद्दुद किस को कहते दूर ग़मों से जब थे दिन आँख-मिचौली और कब्बडी गुल्ली डंडे वाले दिन रातें राहत से भरपूर और शरारत वाले दिन पीछे पीछे तितली के फुलवारी में बीते दिन आम अमरूद के पेड़ों पर डाल पे बैठे खाते दिन काग़ज़ पेंसिल और किताब ऐसी दौलत वाले दिन जिस्म ग़ुबार-आलूदा ले कर तालाबों में तैराते दिन कोई नहीं था दुश्मन जब सब को दोस्त बनाते दिन तोड़ लें औरों के अमरूद सब के साथ वो खाते दिन काट लें खेतों से गन्ने चोरी पकड़े जाते दिन शाम पढ़ाई में गुज़रे हाए वो मकतब वाले दिन आह 'मनाज़िर' किस से कहें मेरे वो लौटा दे दिन