यूँ मिरे दिल से खेलती है बहार जैसे तारों की दिल-नशीं चश्मक जिस तरह चाँद की हसीं किरनें नीम-शब गोशा-ए-गुलिस्ताँ में पत्ती पत्ती पे नाज़ से खेलें यूँ मिरे दिल से खेलती है बहार जिस तरह क़ुर्ब-ए-हुस्न का एहसास जैसे महबूब की निगाह-ए-जमील दिल में आँखों की राह से उतरे और हो जाए रूह में तहलील यूँ मिरे दिल से खेलती है बहार जैसे उल्फ़त के बे-सदा नग़्मे जिस तरह ग़म की मुज़्महिल तानें दर्द-ए-अफ़्सुर्दगी से उक्ता कर साज़-ए-हस्ती से ख़ुद-ब-ख़ुद उभरें यूँ मिरे दिल से खेलती है बहार जैसे आँचल किसी हसीना का हौले हौले उड़ा रही हो नसीम जिस तरह अक्स-ए-हूर से खेले ख़ुल्द में मौज-ए-कौसर-ओ-तसनीम