बहुत मुमकिन है मैं शाइ'र न होती तो बन कर मैं मुजावर किसी दरगाह पर झाड़ू लगाती या बन के मैं कोई मज्ज़ूब हस्ती हवाओं में कहीं रस्ते बनाती ये दुनिया फिर भी मेरे गिर्द इक मजमा लगाती कभी हँसती कभी ठोकर लगाती मैं अपनी राल से लिखती फ़साने बदलते ये सभी मंज़र अगर पुतली मैं आँखों की घुमाती तू पीछे भाग दुनिया के ये तुझ से दूर जाए तू ठोकर दे उसे जिस दिन तेरे पीछे ये आए अगर तू पास दुनिया के तो रब से दूर होगा अगर हो पास रब के तो ये क़दमों में समाए