एक दिन उस ने जो मुझ से पूछा क्यों मिरे मिलने का अरमान हुआ उस को देखा तो मगर आहों का मौजज़न सीने में तूफ़ान हुआ हुई चेहरे से नुमायाँ वहशत दोनों हाथों से लिया दिल को थाम यास अरमान तमन्ना हसरत दिल से आँखों में उतर आए तमाम कुछ जवाब उस को जो देना चाहा लब मिले पर न सदा निकली आह एक महशर था ख़यालों का बपा वो लगी चुप कि अयाज़न-बिल्लाह