ज़ीस्त का तर्जुमाँ है मेरा कृष्न या'नी जान-ए-जहाँ है मेरा कृष्न है वही मालिक-ए-फ़ना-ओ-बक़ा वाली-ए-दो-जहाँ है मेरा कृष्न आप जादा है आप मंज़िल है या'नी मंज़िल-निशाँ है मेरा कृष्न मेरी मंज़िल क़रीब-तर कर दी रू-कश-ए-रहबराँ है मेरा कृष्न बाग़-ए-ईमाँ को ताज़गी बख़्शी नाज़िश-ए-गुलसिताँ है मेरा कृष्न मेरी दुनिया सँवार दी उस ने मेरी रूह-ए-रवाँ है मेरा कृष्न फ़िक्र-ए-दुनिया-ओ-आक़िबत ही नहीं ज़ामिन-ए-दो-जहाँ है मेरा कृष्न