अब ये मसाफ़त कैसे तय हो ऐ दिल तू ही बता कटती उम्र और घटते फ़ासले फिर भी वही सहरा चैत आया चेतावनी भेजी अपना वचन निभा पतझड़ आई पत्र लिखे आ जीवन बीत चला ख़ुशियों का मुख चूम के देखा दुनिया मान-भरी दुख वो सजन कठोर कि जिस को रूह करे सज्दा अपना पैकर अपना साया काले कोस कठिन दूरी की जब संगत टूटी कोई क़रीब न था अपने गिर्द अब अपने आप में घुलती सोच भली किस के दोस्त और कैसे दुश्मन सब को देख लिया काँच की इक दीवार ज़माना आमने-सामने हम नज़रों से नज़रों का बंधन जिस्म से जिस्म जुदा राहें धड़कीं शाख़ें कड़कीं इक इक टीस अटल कितनी तेज़ चली है अब के धूल-भरी हवा दुखड़े कहते लाखों मुखड़े किस किस की सुनिए बोली तो इक इक की वैसी बानी सब की जुदा