ये काला पर्बत और ज़ार-ओ-क़तार रोता हुआ झरना ये बेकल वादियाँ आँखों में आँसू लिए हुए ये पगडंडी का मोड़ और तुम कहते हो वीरानों में नई रौशनी आ गई रौशनी की लौ में ज़िंदगी आ गई लेकिन पूनम ये काला पर्बत मुझे कुछ देखने नहीं देता ख़ौफ़नाक धुआँ मेरी आँखों को अंधा किए देता है तुम्हीं कहो मैं उम्मीद के सीने पर जवानी का उभारा कैसे देखूँ हसीन-ओ-जमील तमन्नाओं का शोख़ अंदाज़ कैसे देखूँ ये काला पर्बत मेरी दुनिया से रौशनी छीन रहा है लेकिन क्या ऐसा होना लाज़मी है उन की आँखें भी तो काली हैं फिर उन में अथाह रौशनी क्यूँ है शायद काला पर्बत भी आँखें खोले तो उस की रौशनी मेरी आँखों में समा कर मेरी निगाह को अमर कर दे