बुलावा By Nazm << आईना एक नज़्म >> ज़रा ठहरो किधर हम जा रहे हैं उधर उस चार-दीवारी के पीछे वो बूढ़ा गोरकन चिल्ला रहा है ''इधर आओ क़दम जल्दी बढ़ाओ यहाँ इस चार-दीवारी के अंदर जनम दिन से तुम्हारी मुंतज़िर हैं वो क़ब्रें जिन की पेशानी पे अब तक किसी के नाम का कतबा नहीं है'' Share on: