चरस By Nazm << नया जन्म एक नज़्म >> गाव तकिए टेढ़े से ठीक पीठ के नीचे से सरकते जाते हैं ज़ेहन में जो सोचों का इज़्दिहाम होता है उन का शोर यक दम से ज़ेहन के ख़लाओं में डूब डूब जाता है आस-पास की दुनिया किस क़दर हसीं है फिर जो सुकूँ है दिल के अंदर उस का हुस्न ला-सानी लो ये आख़िरी कश है Share on: