क्या छा रही है चाँदनी इठला रही है चाँदनी दरिया की इक इक लहर को नहला रही है चाँदनी लहरा रही है चाँदनी दरिया किनारे देखना पानी में तारे देखना तारों को दामन में लिए क्या क्या नज़ारे देखना दिखला रही है चाँदनी ठंडी हवा ख़ामोश है उजली फ़ज़ा ख़ामोश है ख़ामोश है सारा जहाँ हर इक सदा ख़ामोश है और छा रही है चाँदनी देखो समय वो दूर के खे़मे खड़े हैं नूर के दरिया की नीली सत्ह पर कुछ फूल से बिल्लोर के बरसा रही है चाँदनी ऐ लो वो बदली आ गई और चाँदनी पर छा गई बाहर निकलने के लिए फिर आई फिर कतरा गई घबरा रही है चाँदनी लो रात के मंज़र चले तारे भी घुल घुल कर चले बैठे हुए याँ क्या करें 'अख़्तर' हम अपने घर चले अब जा रही है चाँदनी