आदम-ख़ोर सिफ़त थी उस की वो इस जंगल से आया था जिस में ख़ूनी नाग पले थे वो चेहरे पर ख़ोल चढ़ाए इंसानों में आन बसा था अपना जबड़ा अपने पंजे उस ने छुपा रक्खे थे नज़र से उस मासूम की जिस ने उस को शहर का रस्ता बतलाया था अपनी बक़ा की ख़ातिर यारो अपना जबड़ा अपने पंजे मैं ने भी अब खोल रखे हैं