विसाल By Nazm << दिफ़ाअ' सागर मंथन >> जलती बुझती हुई आँखों में ये गर्द-ए-मह-ओ-साल माज़ी है न हाल ज़ेहन करता है सवाल दिल है ख़ामोश कि अब रूह और जिस्म का रिश्ता टूटा Share on: