सुमूम तेज़ है मौज-ए-सबा को आम करो ख़िज़ाँ के रुख़ को पलटने का एहतिमाम करो बिखर रहे हो मज़ामीन-ए-शायरी की तरह किसी मक़ाम पे जम जाओ कोई काम करो सबक़ मिला है ये तारीख़ के नविश्तों से कि तेग़-ए-हैदर-ए-कर्रार बे-नियाम करो जबीं पे ख़ाक है किस आस्तान-ए-दौलत की कभी तो अपनी आना का भी एहतिराम करो ये मशवरे हैं कई दिन से क़स्र-ए-शाही में किसी तरीक़ से दानिशवरों को राम करो क़लम की शोख़-निगारी को रोकने के लिए ज़बाँ-दराज़ अदीबों को ज़ेर-ए-दाम करो झुका के सर किसी फ़रमाँ-रवा की चौखट पर ज़बान-ए-तोहमत-ओ-इल्ज़ाम बे-लगाम करो 'ज़फ़र' अली की ज़बाँ में है मशवरा मेरा मिरी तरफ़ से इसे दोस्तों में आम करो इस इब्तिला से ख़ुदा की हज़ार-बार पनाह कि झुक के तुम किसी ना-अहल को सलाम करो