ऐ बाद-ए-सबा महबूब से मिलने जाना है पैग़ाम मिरा पहुँचाना है पर हद्द-ए-अदब लाज़िम रखना वो शोख़ जवाँ गर ख़्वाब में हो धीरे से ज़ुल्फ़ें सहलाना बेदार अगर वो हो जाए तो कहना सलाम-ए-शौक़ मिरा फिर कहना कि दीवानी मैं पलकों को बिछाए बैठी हूँ मिलने को बहुत बेताब हूँ मैं और नींद अगर कुछ गहरी हो पलकों को हौले से छूना रुख़्सार थपक देना उन के दीवार-ओ-दर पर लिख देना ऐ जान-ए-ग़ज़ल मैं ज़िंदा हूँ बस आप की दीद की ख़ातिर अब