चमन-ज़ारों को सहरा कर दिया है ये किस ने मस्ख़ चेहरा कर दिया है जहान-ए-नौ की इस अंधी रविश ने मिरे ज़ख़्मों को गहरा कर दिया है सुनहरे ख़्वाब दिखला कर किसी ने नई बस्ती का शोहरा कर दिया है और अपनी बद-क़िमाशी के चलन से हमें बाज़ी का मोहरा कर दिया है नहीं फ़रियाद कोई सुनने वाला सभी को गुँगा-बहरा कर दिया है हमारे जिस्म-ओ-जाँ पर भी उसी ने सितम का वार गहरा कर दिया है चमन-ज़ारों को सहरा कर दिया है