जिन्हें चाहते हो पसंद करते हो उन की रूहों को टटोलो सच्चाइयों की गिरहों को खोलो वहाँ भी अंधेरे खंडर हैं वहाँ भी वीरान मंज़र हैं वहाँ भी ज़ख़्मों के बसेरे हैं वहाँ भी तन्हाइयों के डेरे हैं वो बस हँसते हैं नुमाइश के लिए उन की ज़हर-ख़ंद हँसी को समझो गोशा-ए-आफ़ियत उन्हें मिला है न तुम्हें मिलेगा कि वो भी आसी ख़्वाहिशों के कि तुम भी आसी आरज़ुओं के जिन्हें चाहते हो पसंद करते हो उन की रूहों को टटोलो सच्चाइयों की गिरहों को खोलो