अमल की अज़्म की इख़्लास-ए-निय्यत की ज़रूरत है वतन से ऐ वतन वालो मोहब्बत की ज़रूरत है ज़रूरत है कि इक दिल और इक आवाज़ हो जाओ हक़ीक़त तो यही है अब हक़ीक़त की ज़रूरत है कहाँ तक मिल्लतों के इख़्तिलाफ़ात आए दिन होंगे हर इक मिल्लत से अब तो मेल-ए-मिल्लत की ज़रूरत है ज़बानी ख़ादिम-ए-मुल्क-ओ-वतन बनना तो है आसाँ अगर मख़दूम बनना है तो ख़िदमत की ज़रूरत है तुम्हारा हर अमल किरदार-ए-इंदरा का नमूना हो मुरव्वत की सदाक़त की हमिय्यत की ज़रूरत है ख़याली जन्नतें बनती रहीं बज़्म-ए-तसव्वुर में अमल से जो बने अब ऐसी जन्नत की ज़रूरत है ज़बाँ से जो कहो अपनी वही दिल का तराना हो हम-आहंगी को भी साज़-ए-हक़ीक़त की ज़रूरत है फ़क़त फूलों की ख़ुश-रंगी से ऐ 'तकमील' क्या हासिल जो दुनिया को बसाना है तो निकहत की ज़रूरत है