एक ख़्वाहिश By Nazm << तेरी तस्वीर दादी अम्माँ >> और मैं सोचता हूँ यूँही उम्र भर एक कमरे में शतरंज की मेज़ पर तुम मुसलसल मुझे मात देती रहो मैं मुसलसल यूँही मात खाता रहूँ अपनी तक़दीर पर मुस्कुराता रहूँ Share on: